Friday, Jan 10, 2025

US Economy: अमेरिका पर डिफॉल्टर होने का खतरा, हिलेगी पूरी दुनिया

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Updated on 2023, 23 May

 
दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी अमेरिका खतरे में है। देश पहली बार कर्ज के भुगतान में डिफॉल्ट करने के कगार पर पहुंच गया है। बैंकों की हालत खस्ता है, डॉलर को पूरी दुनिया में चुनौती मिल रही है और डेट टु जीडीपी रेश्यो रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुका है। अमेरिका ने डिफॉल्ट किया तो इसका असर पूरी दुनिया पर होगा।
दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी अमेरिका (US Economy) के लिए हर तरफ से निगेटिव खबर आ रही है। हाल में देश के दो बड़े बैंक डूब गए और कई डूबने के कगार पर हैं। लोगों ने कुछ ही दिनों में बैंकों से कुछ ही दिनों में एक लाख करोड़ डॉलर से अधिक निकाल लिए। इससे बैंकों की हालत और खस्ता हो गई है। डॉलर को पूरी दुनिया में कड़ी चुनौती मिल रही है। कई देशों ने डॉलर के बजाय अपनी करेंसी में ट्रेड करना शुरू कर दिया है। अमेरिका का डेट टु जीडीपी रेश्यो रेकॉर्ड पर पहुंच गया है। अमेरिका पर पहली बार डिफॉल्ट करने का खतरा मंडरा रहा है। जुलाई तक डेट सीलिंग नहीं बढाई गई तो तबाही आ सकती है। अगर अमेरिका ने डिफॉल्ट किया तो 70 लाख से अधिक नौकरियां एक झटके में खत्म हो जाएगी और जीडीपी में पांच फीसदी गिरावट आएगी। इसका असर भारत समेत पूरी दुनिया पर होगा।
अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलन ने जनवरी में चेतावनी दी थी कि अमेरिका जून तक कर्ज के भुगतान में डिफॉल्ट कर सकता है। अमेरिका डेट लिमिट को पार कर चुका है। येलन ने संसद से जल्दी से जल्दी डेट लिमिट बढ़ाने का अनुरोध किया था। अगर अमेरिका ने कर्ज के भुगतान में डिफॉल्ट किया तो इससे अमेरिका की इकॉनमी को भारी नुकसान होगा, लोगों की जिंदगी दूभर हो जाएगी और ग्लोबल फाइनेंशियल स्टैबिलिटी पर इसका व्यापक असर होगा। डेट लिमिट वह सीमा होती है जहां तक फेडरल गवर्नमेंट उधार ले सकती है। 1960 से इस लिमिट को 78 बार बढ़ाया जा चुका है। पिछली बार इसे दिसंबर 2021 में बढ़ाकर 31.4 ट्रिलियन डॉलर किया गया था। लेकिन यह इस सीमा के पार चला गया है।
बाइडेन और हाउस स्पीकर की बातचीत नाकाम
संसद से कर्ज की मंजूरी हासिल करने की कोशिश में जुटे प्रेसिडेंट जो बाइडेन की एक और कोशिश नाकाम हो गई है। बाइडेन ने हाउस स्पीकर कैविन मैक्कार्थी से सोमवार रात लंबी बातचीत की, लेकिन मसले का हल नहीं निकल सका। ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ की रिपोर्ट के मुताबिक- बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन के पास अब महज 10 दिन हैं। इस दौरान उन्हें हर सूरत में रिपब्लिकन पार्टी को मनाकर डेट् सीलिंग (आसान भाषा में नए कर्ज के लिए बिल पास कराना) अप्रूवल लेना होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो सरकार किसी तरह के नए पेमेंट्स नहीं कर सकेगी। तकनीकि तौर पर इसे आप दिवालिया होना या डिफॉल्टर कह सकते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक- डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन की सियासी तनातनी का असर अमेरिकी शेयर मार्केट पर भी पड़ सकता है। इन्वेस्टर्स के जेहन में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। कैश फ्लो कम होने का खतरा भी है। बाइडेन और मैक्कार्थी की बातचीत भले ही किसी नतीजे पर न पहुंची हो, लेकिन मीडिया के सामने दोनों यही कहते रहे कि वक्त रहते इस मुश्किल का हल निकाल लिया जाएगा।‘यूएस टुडे’ की रिपोर्ट में भी यही भरोसा जताया गया है। इसमें कहा गया- बहुत मुमकिन है कि मई के आखिरी हफ्ते या जून की शुरुआत में तमाम फाइनेंशियल मैटर सैटल हो जाएं और अमेरिकी इकोनॉमी नए ट्रैक पर लौट आए। इसकी एक बड़ी वजह चीन और रूस से मिल रही चुनौती भी है।





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